पेड़ों की छाँव

चारों ओर शोर सा है
पर मैं ना जाने खामोश क्यों
खुद से खफा नहीं हूँ
पर यूं संतुष्ट भी नहीं
नोटों से भरी इस दुनिया में
इक पेड़ है जो छाँव और फल देता है
मेरे जैसे पथिक का
वो ही आसरा भी होता है
पर जब तक नहीं मिलता वो
इन नोटों वाले पेड़ों का ही गुज़रा है

कब दिन ढल जाएगा
कब रात बीतेगी,
इस आस में के राहत मिल पाएगी
बस चल रहा हूँ मैं
उस झोंके के संग
ले चले जहां वो मुझे
मेरी डोर तो छूट गयी
बस एक गांठ बाकी है
अभी भी कुछ सांस बाकी है

फिर पसरेगी खामोशी
फिर पूस की रात आएगी
जब जश्न ज़रूर मानेगा
पर ग़म की घटा भी छाएगी
निकलेंगे हम उस आँधी में
फिर दीप ज्ञान का लेकर
शोर होगा साँसो में और
गरज उठेगी धड़कन
लौ से दीपक की हम
राख़ करेंगे नोटों को
पेड़ों पे सिर्फ फल लगेंगे
और छांव मे बीतेगा ये जीवन

Comments

Popular posts from this blog

ABC by Wislawa Szymborska

Falling in Love

Valentines